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________________ त्रतम जैनाचार्य द्वारा निर्मित भूवलय ग्रन्थ मे महाभारत और गीता का अपूर्व समन्वय दिखलाई पडता है । प्रतीत ऐसा होता है कि भेद और अभेद, विरोध और अविरोध अनेकत्व और ऐक्य मिलन और बिछोह प्रारभ से ही चलता रहा है । अतः यह निश्चित है कि भारत की समस्त विचारधाराओ मे पारस्परिक समन्वयात्मकता का प्रभाव सहसा ही झलक उठता है । भेद दृष्टि से इन तीनो धर्मोका साहित्य पृथक् २ रूप मे भी अपनी-अपनी मौलिक विशेषताओं से युक्त है। प्रस्तुत श्री जैन महाभारत उपलब्ध महाभारत का ही जैन सस्करण नही है अपितु अपनी टेकनीक, कथा वस्तु तथा दरित्रचित्रण की दृष्टि से सर्वथा पृथक् है । प्राय जैन साहित्य पर सर्वाङ्गरूप से साहित्य का एक ही लक्षण घटित होता है कि साहित्य मनोरजन के लिए न होकर जीवन के लिए है। प्रस्तुत समग्न कथावस्तु शृगार रस प्रधान होने पर भी वीतराग के उपदेशो और जैनधर्म के प्राचार नियमो को व्यवस्थित रूप से प्रगट करती चली है। इस महाग्रन्थ मे पाठको को जीवन वसत की मदमाती तितलियो और मदमत्त भवरो का गु जन प्रमदाजनो की चलपलनो की बयार नूपुर गुञ्जन, विरह मिलन का स्वर जहा सुनाई देगा वहाँ जीवन नैया को खेह कर पार ले जानेवाला सदुपदेश भी प्राप्त होगा। इस गद्य ग्रथ को लोकसाहित्य मे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा वयोकि समग्र ग्रन्थ साहित्य की सरलता का प्रतीक, सामान्यजन सुलभलोकभोग्य कथाओ से परिपूर्ण, प्राचीन भारतीय इतिहास, उपदेश और जैन दृष्टिकोण से सुसज्जित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्रम् (सस्कृत जैन ग्न थ) के अन्तस्तल के रूप मे चित्रित किया गया है। प्रचलित महाभारत मे और इस जैन महाभारत मे तुलना करने पर चाहे कितने ही क्यो न मौलिक अन्तर और भेद प्रभेद प्राप्त हो सकें किन्तु जैन के नाते इसकी अपनी निजी विशेषताए
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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