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वसुदेव का गृहत्याग
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आज मैं तेरे सम्पूर्ण अपराधों का बदला चुकाये देती हूँ ।" यह कहकर नमने अपनी म्यान से तलवार निकाल श्रगारक पर आक्रमण किया, तब उसके वार को रोक कर श्रगारक बोला कि हे दुष्टिनी तू मेरी आंखों के सामने से दूर होजा । स्त्री पर शस्त्र उठाकर मैं अपने हाथों को कलंकित नहीं करना चाहता । एक तो तू अबला है, दूसरे मेरी चचेरी afer है इसीलिए मेरा हाथ तुझ पर नहीं उठ रहा है, नहीं तो मैं कभी का यमलोक पठा देता । श्रगारक के ऐसे वचन सुन सिंहनी की भांति दहाती हुई श्यामा ने श्रगारक को फिर ललकारा कि स्वार्थान्व मनुष्य के लिए न कोई स्त्री है न कोई बहिन न कोई भाई, तेरी आंखों में स्वार्थ का नशा छाया हुआ है । इस लिए तू अपनी बहिन के पति को भी मारने के लिए उद्यत हो रहा है, तो फिर तुझे बहिन की क्या चिन्व है । रे दुष्ट || तुझ में कुछ भी साहस है तो आ आगे बढ़ और मेरे दो हाथ देस |
श्यामा के ऐसे कठोर वचन सुन और उसे अपना रे देस अंगारक आग बबूला हो उठा। वह दुष्ट विद्या और शिलाओं से कोमलॉगी श्यामा पर वार कर उसका उसी प्रकार के शस्त्रों से सामना कर श्यामा दोनों का बहुत देर तक भयकर युद्ध तलवारें टाल पर लग लग फर भयंकर लगी। इन दोनों को इस प्रकार चक्ति हो गये । उनके देखते ही श्यामा के शरीर के दो टूक करने
दे
पारावार न रहा। वे
प्यारों मिच गई। इतने में हो
दी। प्रोस सोलकर करती हुई दवाई
करते
महेन्द्र वसुदेव के बार से
के कुछ
हे