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जैन महाभारत
वसुदेव का वीणा-वादन अध्ययन इस चम्पा नगरी में एक चारूदत्त नामक सेठ है । उसकी गन्धर्वदत्ता नामक कन्या परम रूपवती और गुणवती है, अन्यान्य कलाओं के साथ वह वीणा वादन मे अद्वितीय है, इसलिए उसने यह प्रतिज्ञा कर रक्खी है कि जो कोई व्यक्ति वीणा-वादन मे मुझ से श्रेष्ट सिद्ध होगा मैं उसी की अर्धाङ्गिनी बनूगी। इस गन्धर्व सेना ने अपने अनुपम रूप लावण्य की छटा से ससार भर के युवको के हृदयो को व्यामोहित कर डाला है । अतः देश देशान्तरों के वीणा-वादन में विशारद सभी कलाकार चम्पापुरी मे आकर एकत्रित हो गये है,प्रतिमास एक बार संगीत सभा जुटती है उसमे बड़े बड़े संगीताचार्य अपना कौशल दिखाते हैं । पर विजय श्री गन्धर्व सेना को छोड़ और किसी के हाथ नही लगती।
इस नगरी में सुग्रीव और यशोग्रीव नामक दो विश्व विख्यात संगीताचार्य रहते हैं । वीणा-वादन मे उनकी अद्भुत प्रवीणता के कारण गायकों की मडली रातदिन उनके चरणो में बैठकर वीणा-वादन का अभ्यास किया करती है। ऐसा समझा जाता है कि सगीताचार्य सुग्रीव के संकेतों पर वीणा के स्वर स्वय नाचने लगते है। उनका शिष्यत्व स्वीकार किये बिना सगीत शास्त्र का पारगत बनना अत्यन्त कठिन है। इसलिए वसुदेव ने भी मन ही मन गन्धवे सेना पर विजय प्राप्त करने की इच्छा से सुग्रीव का शिष्य बनने की ठान ली। और वे तत्काल आचार्य सुग्रीव के कला भवन जा पहुंचे। उन्होने आचार्य के चरणों मे अभिवादन कर निवेदन किया कि 'गुरुदेव मै गौतम गोत्री स्कन्दिल नामक ब्राह्मण हूं। श्री चरणो की सेवा मे कुछ सगीत कला का अभ्यास करने की मेरी भी बड़ी लालसा है । आशा है इस सेवक की तुच्छ प्रार्थना स्वीकार कर कृतार्थ करेंगे। परतु वसुदेव को ग्रामीण जैसे वेष में देख तथा संगीतकला में सर्वथा अनभिज्ञ जान आचार्य ने कहा, नहीं हमारे पास तुम्हे कला का ' अभ्यास कराने के लिए समय नहीं है । इस नगर में हमारे हजारों शिष्य-प्रशिष्य हैं। उनमें से किसी के पास जाकर पहले कुछ वर्ष अभ्यास करो फिर कुछ ज्ञान हो जाने पर हमारे पास आजाना । वसुदेव ने फिर भी बहुत अनुनय विनय की पर आचार्य ने उनकी