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जैन महाभारत
कदाचित् वह दुष्ट आपको हर ले गया तो मैं आकाश गामिनी विद्या के प्रभाव से आपको बचा दूगी क्योंकि वह विद्या मुझे आती है।
क्योकि धर्णेन्द्र और विद्याधरो का यह नियम है कि कोई भी विद्याधर या धर्णेन्द्र साधु के पास में बैठे हुए या अपनी पत्नी के पास अवस्थित अथवा सोये हुए किसी भी व्यक्ति को मारेगा उसकी सब विद्याये नष्ट हो जायेगी। इसलिए यदि सदा आप मेरे साथ रहेगे तो वह दुष्ट अगारक आपका बाल भी बाका न कर सकेगा । यद्यपि उसके पास प्रज्ञति विद्या का बल है तो भी उक्त नियम के अनुसार मेरे साथ रहते हुए वह आपका कभी बध नहीं कर सकता। __ श्यामा के मुख से यह वचन सुनकर वसुदेव परम हर्षित हुए । वे दोनो दम्पति नन्दन वन में इन्द्र और इन्द्राणी के समान नाना विध सुख और ऐश्वर्य का उपभोग करते हुए आनन्द पूर्वक समय बिताने लगे । एक दिन शरद् ऋतु की सुन्दर रूपहली रात्रि मे वसुदेव अपने महल की छत पर सुख पूर्वक सो रहे थे कि सहसा किसी आघात से वे चौक पड़े। उन्होंने देखा कि कोई देव उन्हे आकाश में उड़ाये लिए जा रहा है । श्यामा के बताये हुए आकार प्रकार के अनुसार उन्हें यह निश्चय करने मे विलम्ब न लगा कि यह वही श्यामा का भाई अगारक
श्यामा का भी अगारक से युद्ध वसुदेव ने अगारक से छुटकारा पाने के लिए तत्काल अपनी तलचार म्यान से खींच ली किन्तु तलवार को हाथ में पकड़ते ही उनका हाथ जहाँ का तहाँ जकड़ा रह गया। उनकी इस बेवसी को देख अंगारक अट्टहास करता हुआ वोला-हम विद्याधरों के सामने भूचर मनुष्य का कोई बल या शस्त्र काम नहीं देता इसलिए अब तुम मेरे पजे से छूट कर कहीं नहीं जा सकते । यह सुन वसुदेव अभी कुछ मोच ही रहे थे कि तत्काल वहाँ हाथ मे ढाल तलवार लिए हुए श्यामा 'घा पहुंची। उसने अंगारक का मार्ग रोककर उसे ललकारते हुए कहा ___कि अरे दुष्ट 11 मेरे जीते जी मेरे प्राणनाथ को हर कर कहाँ लिए जा
रहा है । तू मेरे पिता का राज्य छीन कर भी संतुष्ट न हुआ, ठहर,