________________
२. कोष्ठबद्धता मिटती है। ३. गर्दन के स्नायु पुष्ट होते है। ४. फेफड़ो का व्यायाम होता है।
दूसरी विधि . गले और मस्तिष्क पर प्रभाव होता है।
पवनमुक्तासन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। बाये पैर को उठाकर उसे मोड़ते हुए उससे बाये वक्ष को दबाइए। फिर उसे सीधा कर दीजिए। दाये पैर से भी उसी क्रिया को दोहराइए। फिर दोनो पैरो से एक साथ वक्ष के दोनो पार्यो को दबाइए। फिर दोनो पैरों को फैला दीजिए। यह बैठकर भी किया जा सकता है।
समय-पांच से पन्द्रह मिनट तक। फल-१. अपान वायु की शुद्धि।
२. वायु (गैस) का ऊर्ध्वगामी होना बद हो जाता है। भुजंगासन
विधि-भूमि पर पेट के बल लेट जाइए। दोनो हाथो के पंजो को पेट के दोनो पार्यो से सटाते हुए भूमि पर टिकाइए। फिर हाथो को वक्ष के पास लाकर पूरक करते हुए नाभि के ऊपर के भाग को ऊपर की ओर उठाते हुए सर्प के फण की मुद्रा में हो जाइए।
समय-उक्त मुद्रा मे एक-दो मिनट कुम्भक के साथ रहिए। फिर श्वास का रेचन करते हुए धीमे-धीमे औंधा लेटने की मुद्रा में आ जाइए। फल-१. स्वप्न-दोष मिटता है।
२. वीर्य शुद्ध होता है। ३. प्राणायाम से होने वाले लाभ भी सहज प्राप्त हो जाते है।
धनुरासन
विधि-भूमि पर पेट के बल लेट जाइए। पैरो को घुटनो के पास
मनोनुशासनम् । ६६