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________________ जितना अधिक कहा जा सकता है, उतना दूसरी भाषा मे कहना कठिन है। इसकी सूत्रबद्ध शैली के पीछे भी यही सक्षेपीकरण का दृष्टिकोण रहा युवाचार्य महाप्रज्ञ ने इसकी विस्तृत व्याख्या लिखकर तथा इसे अपनी अनुभूति से आप्लावित कर बाल, युवा और वृद्ध-सब लोगों के लिए अधिक उपयोगी बना दिया है। बृहद् व्याख्या के बिना केवल सूत्र इतने जनोपयोगी नहीं हो सकते थे। मेरी प्रेरणा को उन्होने मूर्त रूप दिया है। योग में उनकी सहज गति है। ज्ञान के अभ्यासी होने के कारण उनकी भाषा मे बेधकता है। दर्शन के अभ्यासी होने के कारण दार्शनिक तत्त्वों को भी उन्होने सहजगम्य बनाने का प्रयत्न किया है। व्याख्या सहित 'मनोनुशासनम्' योग मे रुचि रखने वाले लोगो के हाथो मे प्रस्तुत है। हमारे धर्म-सघ मे तो इसका अधिक उपयोग होगा ही पर प्रत्येक जिज्ञासु मनुष्य इससे लाभान्वित होगा। -आचार्य तुलसी अणुव्रतनगर मोतीबाग, रायपुर (म. प्र.) २१ जुलाई, १६७०
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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