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का नहीं है।
अणु-अस्त्रो के इस युग मे मानसिक सतुलन बहुत ही अपेक्षित है। । आज कुछेक व्यक्तियो का थोडा-सा मानसिक असतुलन बहुत बडे अनिष्ट का निमित्त बन सकता है।
मानसिक सतुलन के अभाव मे व्यक्ति का जीवन दृभर बन जाता है। सव सयोगो मे भी एक विचित्र खालीपन की अनुभूति होती है। अनेक व्यक्ति पूछते है-शान्ति कैसे मिले ? मन स्थिर कैसे हो ? मै उन्हे यथोचित समाधान देता। ये प्रश्न कुछेक व्यक्तियो के ही नही है। ये व्यापक प्रश्न है। इसलिए इनका समाधान भी व्यापक स्तर पर होना चाहिए। 'मनोनुशासनम्' के निर्माण का यही प्रयोजन है। प्राचीन भापा में जो योग है, उसकी एक रेखा आज की भापा मे मनोविज्ञान है। मानसिक विकास दोनो मे अपेक्षित है। मन को केन्द्रित किए विना उसका विकास नही हो सकता। योगशास्त्र मानसिक विकास को अतीन्द्रिय ज्ञान की भूमिका तक ले जाते है। बुद्धि और मन से परे जो चेतना है, वही वस्तुतः अध्यात्म है। वहा पहुंचने पर ही व्यक्ति को सहजानन्द की अनुभूति होती है। वह स्थिति मानसिक विकास के बाद ही प्राप्त होती है। ___मन को अनुशासित करना जितना एक जैन के लिए उपयोगी है, उतना ही एक अजैन के लिए भी उपयोगी है। यह मनुष्य मात्र के लिए उपयोगी है। यह अणुव्रत-आन्दोलन की भाति सबके लिए है। अध्यात्म अमुक-अमुक के लिए नही, किन्तु प्रत्येक आत्मा के लिए है।
मनुष्य मे अनन्त शक्ति, अनन्त आनन्द और अनन्त चैतन्य होता है। किन्तु मन को अनुशासित करने का मार्ग नही जानता इसलिए वह अपने आपको कभी निर्वल, कभी दुखी और कभी अज्ञानी अनुभव करता है। इसी अवस्था को मै धनवान् की गरीबी कहता हू।
आज का युग नवजागरण का युग है। सबका जागरण हो रहा है, तब मन भी जागृत होना चाहिए। सव जाग जाए और मन सो जाए-यह वाछनीय नहीं है। वाछनीय यह है कि जागरण से पूर्व मन जग जाए।
सहज अनुशासित मन ही जागृत मन है। आज के मानव को उसकी प्रक्रिया की अपेक्षा है। उसी प्रक्रिया का दिग्दर्शन 'मनोनुशासनम्' मे कराया गया है। इसकी भाषा मैने सस्कृत इसलिए रखी कि सस्कृत मे थोडे में