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फल-टैहिक प्रवृत्ति और स्नायविक तनाव का विसर्जन।
आम्रकुजिकाशयन
विधि-भूमि पर किसी भी पार्श्व से लेट जाइए। सिर और पैरो को कुछ आगे की ओर निकालिए। इसमे दोनो ओर से नीचे की ओर झुके हुए आम की भाति कुछ कुब्ज-आकार हो जाता है।
समय-दीर्घकाल फल-पार्श्व के स्नायुओ की शुद्धि ।
उत्तानशयन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। सिर से लेकर पैर तक के अवयवो को पहले ताने और फिर क्रमश. उन्हे शिथिल कीजिए। सममात्रा मे तथा दीर्घ श्वास-उच्छ्वास लीजिए। मन को श्वास और उच्छ्वास मे लगाकर एकाग्र, स्थिर और विचारशून्य हो जाइए। हाथो और पैरो को अलंग-अलग रखिए।
समय-दीर्घकाल। फल-दैहिक प्रवृत्ति और स्नायविक तनाव का विसर्जन। इसे सुप्त कायोत्सर्ग या शवासन भी कहते है।
अवमस्तकशयन
विधि-औधे मुख लेट जाइए। हाथो और पैरो को उत्तानशयन की भांति रखिए।
समय-पांच मिनट।
फल-वायु व उदर दोषो की शुद्धि । एकपार्श्वशयन
विधि-बाये या दाये किसी एक पार्श्व से लेट जाइए और उस पार्श्व के हाथ को सिर के नीचे रखिए।
समय-दीर्घ काल। फल-१. वीर्य की सुरक्षा।
मनोनुशासनम् । ६७