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३ चीनी से अम्लता वढती है और रक्त में गर्मी वढने के कारण
कुछ उत्तेजना भी बढती है। इसलिए चीनी का सयत प्रयोग ही हितकर हो सकता है। ४ दूध दिन-भर मे पाव या आधा सेर लिया जा सकता है किन्तु मस्तिष्क-सम्वन्धी कार्य के लिए उससे निप्पन्न होने वाली शक्ति
की खपत हो तो। ५ वायु और पित्त के शमन के लिए एक या दो तोला घी
लिया जा सकता है किन्तु उसकी अधिक मात्रा अपेक्षित नहीं है। घी सर्वाधिक वीर्यवर्धक वस्तु है। उसके अधिक सेवन का अर्थ है-अधिक वीर्य की उत्पत्ति और वीर्य के अधिक होने का अर्थ है वासना को उभारना। यह स्थिति ध्यान के लिए अनुकूल
नही है। जैन साधना-पद्धति मे दीर्घकालीन ध्यान को बहुत महत्त्व दिया गया है। तीन घटा ध्यान करना ध्यान की सामान्य काल-मर्यादा है। उसकी दीर्घकालीन मर्यादा है-कई दिनो या महीनो तक लगातार ध्यान करना। भगवान महावीर ने सोलह दिन-रात तक निरन्तर ध्यान किया था। इस प्रकार का ध्यान वही व्यक्ति कर सकता है जो भूख पर विजय पा लेता है।
केवल भूखा रहना अनशन नही है किन्तु ध्यान की साधना के लिए भूख पर विजय पा लेना अनशन है। यह शरीर को कष्ट देने की स्थिति नही है किन्तु आत्मानुभूति की गहराई में वैठकर सहज आनन्द का स्पर्श करने की स्थिति है। __भूखा रहने से शारीरिक और मानसिक ग्लानि न हो, स्वाध्याय और ध्यान मे विघ्न न आए तब तक उपवास किए जा सकते है। यहीं उपवास की मर्यादा है। सबकी शक्ति समान नही होती, इसलिए उसकी मर्यादा भी भिन्न-भिन्न होती है। दीर्घकालीन ध्यान के लिए उपवास करना स्वत प्राप्त है। अत: अनशन ध्यान की विशिष्ट साधना का सहायक तत्त्व है। ६ शरीरस्य स्थिरत्वापादनं स्थानम् ॥ ७ ऊर्ध्व-निषीदन-शयनभेदात् त्रिधा ॥ ५० / मनोनुशासनम्