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के प्रति आकर्पण कम होगा तो बाह्य के प्रति आकर्पण अधिक होगा। बाह्य के प्रति आकर्षण कम होगा तो अन्तर् के प्रति आकर्षण बढ जाएगा। आकर्षण की दो भूमिकाए है-वाह्य और अन्तरग। इन्द्रियो की शक्ति अन्तरग आकर्षण की ओर मुड जाए तो अन्तरग शक्ति का स्रोत खुल जाता है। दोनो भूमिकाओ का तुलनात्मक रूप निम्न यत्र से स्पष्ट हो जाएगाबाह्याकर्षण
अन्तर्-आकर्षण बाह्य ध्वनि
अन्तर्-ध्वनि बाह्य दर्शन
अन्तर्-दर्शन बाह्य गध
अन्तर्-गध वाह्य रस
अन्तर्-रस वाह्य स्पर्श
अन्तर्-स्पर्श हमारी चेतना अशब्द, अरूप, अगध, अरस और अस्पर्श है।
हम अन्तर्-ध्वनि के प्रति आकर्षण उत्पन्न कर शुद्ध चेतना की भूमिका मे नही पहुंच पाते है। इस प्रयत्न मे हम केवल स्थूल से सूक्ष्म जगत् तक पहुच पाते है। हमारे सूक्ष्म शरीर के साथ भी शब्द, रूप, रस, गध और स्पर्श का सम्बन्ध होता है। उसी के प्रति एकाग्र होकर हम अपनी इन्द्रिय-शक्ति का नया आयाम प्राप्त करते है।
आनापानशुद्धि के उपाय
१. प्राणायाम २. समतालश्वास ३. दीर्घश्वास ४ कायोत्सर्ग।
प्राणायाम-प्राणवायु के विस्तार को प्राणायाम कहा जाता है। उसके तीन अग है
१. पूरक २ रेचक ३. कुम्भक। हम प्राणवायु को नथुनो द्वारा खीचकर नाभि तक ले जाते है, वह
मनोनुशासनम् । १७