________________
दस शक्ति केन्द्र१. श्रोत्रेन्द्रिय प्राण
६ मनोवल २. चक्षुःइन्द्रिय प्राण
७ वचन-वल ३. घ्राणेन्द्रिय प्राण
८ काय-वल ४. रसनेन्द्रिय प्राण
६ श्वासोच्छ्वास प्राण ५. स्पर्शनेन्द्रिय प्राण १०. आयुष्य प्राण।
इनमे परस्पर कार्य-कारण का भाव प्रतीत होता है। शक्ति-स्रोत कारण है और शक्ति केन्द्र उनके कार्य है। संख्या-विस्तार को सक्षेप मे लाने पर दोनो की संख्या समान हो जाती है। शक्ति-स्रोत
शक्ति केन्द्र आहार पर्याप्ति
आयुष्य प्राण शरीर पर्याप्ति
कायबल इन्द्रिय पर्याप्ति
इन्दिय प्राण श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति श्वासोच्छ्वास प्राण भापा पर्याप्ति
वचनवल मन पर्याप्ति
मनोवल य शक्ति-स्रोत और शक्ति केन्द्र न तो चेतन की विशुद्ध अवस्था म हात है और न अचेतन मे होते है, ये चेतन और अचेतन के सयोग मे उत्पन्न होते है। हम जितने प्राणी है, वे सव चेतन और अचेतन (पुद्गल) के सयोग की अवस्था मे है। हमारे विशुद्ध चैतन्य का उदय नहीं हुआ है, इसलिए हम केवल चैतन्य की भूमिका मे अवस्थित नहीं है। हम अनुभव-शक्ति व ज्ञान-शक्ति से सम्पन्न है, इसलिए हम केवल अचेतन की भूमिका में भी नहीं है। हम चैतन्य और अचैतन्य की सयुक्त भूमिका मे हैं।
य शाक्त-स्रोत और शक्ति केन्द्र ही जीव और निर्जीव तत्त्व के वीच व्यावर्तक (भेट डालने वाले) है। जिनमे आहार करने, शरीर-रचना, शध्य-रचना व श्वास लेने की शक्ति है. वे जीव है और जिनमे ये शक्तिया नही है, वे निर्जीव है।
भाषा-शक्ति व चितन-शक्ति जीव के लक्षण नही हैं किन्तु वे विकास के अग्रिम सोपान है।
मनोनुशासनम् / १३
मापयाप्ति