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कुण्डलिनी
नाभि मूल के निकट स्वाधिष्ठान चक्र और मणिपूर चक्र के मध्य मे एक कुण्डलाकार सर्पिणी जैसी सूक्ष्म शक्ति है, इसे कुण्डलिनी कहा गया है। इसका ध्यान वादल के बीच कौधती हुई विद्युत् रेखा के आकार मे भी किया जा सकता है। मूल्बन्ध और उड्डीयान-बन्ध के स्थिर अभ्यास से यह जागृत होती है। कुछ ग्रन्थो मे इसे कमलतन्तु के समान सूक्ष्म रूपावली प्राणशक्ति कहा गया है। जैन साहित्य मे तेजोलब्धि का जो वर्णन है, वह कुण्डलिनी के वर्णन जैसा ही प्रतीत होता है। भस्त्रिका
दोनो नथुनो से धौकनी की भाति शब्द करते हुए श्वास लेना और छोड़ना भस्त्रिका प्राणायाम है।
समवृत्ति प्राणायाम
एक नथुने से श्वास लेना और दूसरे नथुने से उसे छोड़ना समवृत्ति प्राणायाम है।
सर्वेन्द्रिय संयममुद्रा___दोनो अगूठे कानों मे स्थापित है। दोनो तर्जनिया मुदी हुई आखो को धीमे से दवाए हुए है और उनके अग्रभाग आख और नाक के मध्यवर्ती देश पर कुछ अधिक दबाव डाले हुए है। दोनो मध्यमाए दोनो नथुनो को बन्द किए हुए है। दोनों अनामिकाएं ऊपर के होठ पर तथा दोनो कनिष्ठाए नीचे के होठ पर टिकी हुई है। बस यही है-सर्वेन्द्रियसयममुद्रा।
मनोनुशासनम् / २०७