________________
सयम-हिसा आदि अकरणीय कार्यों से विरत होना। सरोहण-मिलना। संवर-सवरण करना, कर्म-निरोध का हेतु। सस्थान-आकृति। सत्य-शरीर, वाणी और मन की ऋजुता। सत्यपरत्व-सत्य-परायणता। समिति-सयम के अनुकूल प्रवृत्ति। सम्यग्दृष्टि-सत्यस्पर्शी दृष्टि। सर्वार्थग्राही-इन्द्रिय-ग्राह्य सभी विषयो को ग्रहण करने वाला। साचिव्य-सान्निध्य। सात्त्विक-सत्त्वगुणयुक्त। सापेक्ष-अपेक्षा रखने वाला। सालम्वन-आलम्बन सहित। सुलीन-सुस्थिर। सूर्यनाडी-दायां स्वर। स्कन्ध-समूह। स्तेय-चोरी। स्थान-आसन। स्पर्शन-स्पर्श-ग्राहक इन्द्रिय। स्वाध्याय-आत्मा के विषय मे चितन। हिसा-प्राण-वियोजन, असत्प्रवृत्ति।
विशेष शब्द
अश्विनीमुद्रा-अश्व की भाति गुदा के सकोचन और विकोचन को 'अश्विनीमुद्रा' कहा जाता है।
कपालभाति
वह रेचन-प्रधान प्राणायाम है। इसकी क्रिया करते समय कण्ठ पर ध्यान केन्द्रित होता है और कण्टटेश में एक विशेष प्रकार की ध्वनि होती है। यह दस मिनट तक किया जा सकता है।
२०६। मनानुशासनम