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प्रशस्त-अच्छा। प्राण-जीवनी-शक्ति, श्वास । जो श्वास-प्रश्वास लिया जाता है, वह स्थूल प्राण है और जिस शक्ति
के द्वारा वह सचालित होता है, वह सूक्ष्म प्राण है। प्राणायाम-श्वास का रेचन, पूरक और निरोध। वन्ध-स्नायुओ का सकोचन। वहि कुम्भक-श्वास का रेचन कर उसे बाहर रोकना। वाह्य-आत्मा से अतिरिक्त। वोधिदुर्लभता-सम्यग्-ज्ञान, सम्यग-दर्शन और सम्यक्-चारित्र की
दुर्लभता। ब्रह्मचर्य-जननेन्द्रिय, इन्द्रिय समूह और मन की शान्ति। ब्रह्मरन्ध्र-सहस्रार चक्र। भक्तपान-भोजन-पानी। भव-ससार। भस्म-राख। भावना-विशिष्ट सस्कारो का आधान। भेदज्ञान-आत्मा और शरीर की भिन्नता का बोध । मध्यस्थता-उदासीनता, निष्पक्षता । मन-मननात्मक वोध। मनांनुशासन-मन का शिक्षण, अनुशासन । मार्दव-किसी का अनादर न करना। मित-परिमित। मिथ्यादृष्टि-स्वरूप के प्रति अनास्था। मुमुक्ष-मुक्त होने की इच्छा रखने वाला। मृढ-मोह से परिव्याप्त। मंत्री-आत्मीय भाव मोन-वाणी का सवरण। यातायात-की अन्तर्मुखी और कभी वहिर्मुखी होने वाला। यांग-समाधि, प्रवृत्ति। ग्सन-स-ग्राहक इन्द्रिय।
२०४, मनानशासनम