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मलयगिरि ने इसके विवरण मे लिखा है कि कायोत्सर्ग में सूक्ष्म श्वास का निरोध नहीं होता, क्योकि वह किया नही जा सकता।' 'कायोत्सर्ग शतक' में भी सूक्ष्म श्वास-प्रश्वास के विधान के साथ सर्वथा श्वास के निरोध का निषेध किया गया है-'अभिनव-कायोत्सर्ग' करने वाला भी सम्पूर्ण रूप से श्वास का निरोध नही करता तो फिर चेप्टा-कायोत्सर्ग करने वाला उसका . निरोध क्यो करेगा ? श्वास के निरोध से मृत्यु हो जाती है, अतः कायोत्सर्ग मे यतनापूर्वक सूक्ष्म श्वासोच्छ्वास लेना चाहिए। यह सूक्ष्म श्वास स्थूल श्वास-निरोध या कुभक की कोटि मे आ जाता है। ____ पार्श्वनाथ चरित्र मे ध्यानमुद्रा का स्वरूप प्राप्त होता है। वह इस प्रकार है-पर्यक-आसन, मन, वचन और शरीर के व्यापार का निरोध, नासाग्रदृष्टि और मन्द श्वास-प्रश्वास। सोमदेव सूरी ने लिखा है-वायु को मन्द-मन्द लेना चाहिए और मन्द-मन्द छोडना चाहिए। ___श्वास-विजय या श्वास-नियन्त्रण के विना ध्यान नहीं हो सकता-यह सचाई सर्वात्मना स्वीकृत रही है। वृहद् नयचक्र मे योगी का पहला विशेपण श्वासविजेता है।
सोमदेव सूरी ने भी 'मरुतो नियम्य'-इस वाक्य मे श्वास-नियत्रण का निर्देश किया है।६ १. व्यवहार भाष्य पीठिका, गाथा १२३, मलयगिरि वृत्ति पत्र ४२
न खलु कायोत्सर्गे सूक्ष्मोच्छ्वासादयो निरुध्यते, तन्निरोधम्य कर्तुमशक्यत्वात् वर्तते । २. कयोत्सर्ग शतक, गाथा ५६
उस्सास न निरुभई, आभिग्गहिओवि किमु अ चिट्ठाउ ? सज्जमरण निरोहे, सुहमुस्सास तु जयणाए। पासनाहचरिअ, पृ. ३०४ पलिय-क वधेउ, निरुद्धमणवयणकायवावारो। नासग्गनिमियनयणो, मदीकयसासनीसासो।। ४ यशस्तिलकचम्पू, कल्प ३६, श्लोक ७१६ ।
मन्द-मन्द क्षिपेद् वायु, मन्द-मन्ट विनिक्षिपेत् ।
न क्वचिद् वार्यते वायुर्न च शीघ्र प्रमुच्यते॥ ५ वृहद् नयचक्र, श्लोक ३८८
णिज्जियसासो णिप्फदलोयणो मुक्कसयलवावारो।
जो एहावत्यगओ सो जोई णत्यि सदेहो। ६ यशस्तिलकचपू, कल्प ३६, श्लोक ६११। १७६ / मनोनुशासनम्