________________
प्रेक्षाध्यान के आधारभूत तत्त्व
जैन साधको की ध्यान-पद्धति क्या है-यह प्रश्न किसी दूसरे ने नहीं पूछा, स्वय हमने ही अपने आपसे पूछा। पन्द्रह वर्प पूर्व (वि. स. २०१७), यह प्रश्न मन मे उठा और उत्तर की खोज शुरू हो गई। उत्तर दो दिशाओ से पाना था-एक आचार्य से, दूसरा आगम से। आचार्यश्री ने पथ-दर्शन दिया और मुझे प्रेरित किया कि आगम से इनका विशद उत्तर प्राप्त किया जाए।
आगम-साहित्य मे ध्यान विपयक कोई स्वतन्त्र आगम उपलब्ध नहीं है। नदी-सूत्र की उत्कालिक आगमो की सूची मे 'ध्यान-विभक्ति' नामक आगम का उल्लेख है, किन्तु वह आज उपलब्ध नहीं है।' इस स्थिति मे उपलब्ध आगम साहित्य मे आए हुए ध्यान-विषयक प्रकरणो का अध्ययन शुरू किया और साथ-साथ उनके व्याख्या-ग्रथो तथा ध्यान-विषयक उत्तरवर्ती साहित्य का भी अवगाहन किया। इस अध्ययन से जो प्राप्त हुआ उसके आधार पर ध्यान की एक रूपरेखा उत्तराध्ययन के टिप्पणो मे प्रस्तुत की गई। विक्रम सवत् २०१८ मे आचार्यश्री ने 'मनोनुशासनम्' की रचना की। मैने पहले उसका अनुवाद किया और वि. स. २०२४ मे उस पर विशद व्याख्या लिखी। उसमे जैन-साधना पद्धति के कुछ रहस्य उद्घाटित हुए। वि. स. २०२८ मे आचार्यश्री के सान्निध्य मे साधु-साध्वियों की विशाल परिषद् मे जैन योग के विषय मे पाच भापण हुए। उससे दृष्टिकोण को और कुछ स्पष्टता मिली। वे 'चेतना का ऊर्ध्वारोहण' इस शीर्षक से
१. नदी-सूत्र, ७६ २ देखे-उत्तरज्झयणाणि, भाग-२ १६८ / मनोनुशासनम्