SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिन्न रूप मे भावित कर निर्लेपता का अभ्यास किया जाता है। १२ बलभावना से परीषहो (कष्टों) पर विजय प्राप्त की जाती है। १३. वल दो प्रकार का होता है । १. शारीरिक २. मानसिक १४. उनके द्वारा मनोबल इतना परिवर्धित किया जाता है, जिससे परीपहो व उपसर्गो के समुत्पन्न होने पर भी वह कभी विचलित नही होता। १५. प्रतिमाधर व जिनकल्प मुनि इन भावनाओ से अपने-आपको पूर्णत. भान्ति करता है। किन्तु यथाशक्ति दूसरे भिक्षु या गृहस्थ भी अपने आपको भावित कर सकते है। साधना की उच्च प्रक्रिया भूख, पराक्रम-हीनता, अज्ञान, आसक्ति और दुर्बलता-ये पाच साधना के बहुत वडे विघ्न है। इन पर जितने अश मे विजय पायी जाती है, उतने ही अंश मे साधना उद्दीप्त होती है। दीर्घकाल तक कायोत्सर्ग करने का इच्छुक साधक अथवा तीर्थकर तुल्य साधना करने का इच्छुक साधक उन विघ्नों पर विजय पाने का प्रयत्न करता है। साधना के प्रथम चरण मे भूख पर विजय पाने का अभ्यास किया जाता है। दूसरे चरण मे भय और निद्रा पर विजय पाने का प्रयत्न किया जाता है। तीसरे चरण में प्राण की सूक्ष्मता के साथ शास्त्रीय ज्ञान का अभ्यास किया जाता है। चतुर्थ चरण में सव पदार्थो से भिन्नता की दृढ अनुभूति प्राप्त कर आसक्ति पर विजय पाने का प्रयत्न किया जाता है। पाचवे चरण मे साधना मे आने वाले कष्टों पर विजय पाने का प्रयत्न किया जाता है। कण्ठकूप मे वायु को धारण करने से भूख और प्यास पर विजय प्राप्त होती है। यह पाचवे प्रकरण मे वतलाया गया है। वहा भूखविजय की भावनात्मक प्रक्रिया का उल्लेख है। खाए बिना रहने का बार-बार अभ्यास तथा आहार न करते हुए भी तृप्ति और पुष्टि की सुदृढ भावना, अनुभूति या संकल्प करने से शरीर मे कुछ रासायनिक परिवर्तन होते है और भूख की प्रखरता मन्द हो जाती है। इस तपोभावना से साधक छह मनोनुशासनम् / १५३
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy