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डालते है।
क्रोध से अग्नि तत्त्व प्रधान हो जाता है। उसका वर्ण लाल है। मोह से जल तत्त्व प्रधान हो जाता है। उसका वर्ण सफेद या वेगनी है। भय से पृथ्वी तत्त्व प्रधान हो जाता है। उसका वर्ण पीला है। प्रशस्त लेश्याओ के जो वर्ण है, उनकी प्रधानता क्रोध आदि से होती है। इन दोनो निरूपणो मे विरोधाभास है। इससे यह जानने के लिए अवकाश मिलता है कि लाल, पीला और सफेद वर्ण अच्छे विचारो को उत्पन्न नही करते, किन्तु प्रशस्त कोटि के लाल, पीला ओर सफेद वर्ण ही अच्छे विचारों को उत्पन्न करते है। नमस्कार मत्र के जप के साथ जिन रगो की कल्पना की जाती है, उनसे भी यही तथ्य प्रमाणित होता है। जैसेणमो अरहताण
श्वेत वर्ण णमो सिद्धाण
रक्त वर्ण णमो आयरियाण
पीत वर्ण णमो उवज्झायाण
हरित वर्ण णमो लोए सव्वसाहूण
नील वर्ण लेश्या के प्रसग मे कृष्ण वर्ण को सर्वाधिक निकृप्ट माना गया है किन्तु मुनि के साथ कृष्ण वर्ण की योजना की गई है। इससे यही निष्कर्प निकलता है कि कृष्ण लेश्या (निकृष्टतम चित्त वृत्ति) को उत्पन्न करने का हेतु अप्रशस्त कृष्ण वर्ण वनता है। मुनि के साथ जिस कृष्ण वर्ण की योजना की गई है, वह प्रशस्त है। ___साधक को वैचारिक पवित्रता, भावना-शुद्धि तथा वौद्धिक व आध्यात्मिक विकास के लिए रगो का मानसिक अनुचितन करना चाहिए। मुख्यतया अनुचितनीय वर्ण ये है-अरुण, पीत और श्वेत। ___मन की एकाग्रता के लिए आकाश मे दृष्टि टिकाना बहुत उपयोगी है। मुनि का ध्यान करते समय कृष्ण वर्ण का अनुचितन करना बहुत उपयोगी है। सामान्यतया कृष्ण दीनता का सूचक है। किन्तु उसकी एक विशेषता यह है कि वह बाहर से आने वाली रश्मियो को अपने मे केन्द्रित कर लेता है, इसलिए उसका अनुचितन करने वाला बाहरी प्रभावो से अपने आप को बचा लेता है।
१२० / मनोनुशासनम्