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इन केन्द्रो पर ध्यान करने से मन की एकाग्रता सरलता से सधती है और आतरिक ज्ञान विकसित होता है।
पिण्डस्थ ध्यान मे चक्रो का आलम्वन भी लिया जाता है।
चक्र ____ 'ससारिणा वीर्य निमित्तापेक्ष-ससारी जीव की समस्त शक्तियो का उपयोग निमित्त के योग से ही होता है। जीव में चेतन्य है, किन्तु उसका उपयोग इन्द्रियगोलको और ज्ञानवाहक स्नायु-गुच्छको के माध्यम से होता है। जीव में वीर्य है किन्तु उसका उपयोग कर्मेन्द्रियो व क्रिया-ततुओ के माध्यम से होता है । ज्ञानवाहक स्नायु-गुच्छको का सम्बन्ध सुपुम्ना नाडी और पृष्ठरज्जु से है। उन्ही सुपुम्नागत ज्ञानवाही गुच्छको को चक्र कहा गया है। वे ज्ञान की अभिव्यजना के निमित्त है, इसलिए उन पर मन को एकाग्र करने से उनमे प्राणधारा प्रवाहित होती है। ज्ञान के सहायक तन्तु सक्रिय हो जाते हैं।
चक्रो के नाम, स्थान आदि अगले पृष्ठ पर देखिए
वासना-क्षय की दृष्टि से स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान करने का बहुत महत्त्व है।
मणिपुर चक्र पर ध्यान करने से शारीरिक आरोग्य वढता है किन्तु उससे कामशक्ति प्रबल होती है, इसलिए ब्रह्मचारी के लिए आवश्यक है कि वह मणिपुर चक्र पर ध्यान करने के पश्चात् प्राणधारा को हृदय चक्र मे प्रवाहित कर विशुद्धि चक्र तक ले जाए। उसमे उस कामशक्ति का शोधन हो जाता है।
आज्ञा चक्र या भृकुटि चक्र का बहुत महत्त्व है क्योकि इस स्थान मे इडा, पिगला और सुषुम्ना-तीनो का सगम होता है। इसके जागरण से अन्य चक्रो का जागरण सहज हो जाता है और इसका जागरण अन्य चक्रो की अपेक्षा अधिक कठिन और अधिक अभ्यास-सापेक्ष है।
मूलाधार चक्र से ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाया जाता है। उसके ऊर्ध्वगामी होने से मनुष्य की वृत्ति आन्तरिक हो जाती है। ऊर्जा के ऊर्चीकरण का यह आदि बिन्दु है। इसलिए साधना मे इसका बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
अनाहत चक्र प्राणवायु का स्थल और औजस का मुख्य केन्द्र है१०४ / मनोनुशासनम्