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दीपजोति तमहार, घटपट परकाश महा । सम्यक्चारित सार. तेरह विध पूजौं सदा ||६|| ॐ ह्री त्रयोदशविषसम्यक्चारित्राय दीपं निर्व० ।
धूप धारण सुखकार, रोग विधन जड़ता हरं । सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा ॥७॥ ॐ ह्री त्रयोदशविघसम्यक्चारित्राय घूप निर्व० ।
श्रीफल प्रावि विचार, निश्चय सुर शिवफल करें । सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा ॥८॥ ॐ ह्री त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय फल निर्व० ।
जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु | सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजौं सदा ॥ ६ ॥ ॐ ह्री त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अध्यं निर्ण० । जयमाला- दोहा
श्राप भाप थिर नियत नय, तप संजम व्योहार । स्वपर दया दोनो लिये, तेरह विध दुखहार ॥१०॥ चौपाई मिश्रित गीता- छन्द
सम्यक्चारित रतन सँभालो । पांच पाप तजिकै व्रत पालो । पचसमिति त्रय गुप्ति गहोजे । नर भव सफलं करहु तन छोजे ।
छोजे सदा तनको जतन यह, एक सयम पालिये ।
बहु रुल्यो नरक निग़ोद मांहीं, विषय कषायनि टालिये ॥
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शुभ करम-जोग सुघाट प्राया, पार हो दिन जात है । 'द्यानत' धरम की नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है ॥२॥ ॐ ह्री त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय महाघ्यं निर्व० ।