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ये आठ भेद करम उछेदक, ज्ञानदर्पण देखना।
इस ज्ञानहीसो भरत सीझा, और सब पट पेखना ।। ॐ ह्री अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पूर्णाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
चारित्र पूजा दोहा-विषयरोग औषधि महा दव-कवाय-जल-धार।
तीर्थडर जाको घरै, सम्यक् चारितसार ॥१ ॐ ह्री त्रयोदशविघसम्यक्चारित्र | अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐ ह्री त्रयोदशविघसम्यक्वारित्र । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ४ ।। ॐ ह्री त्रयोदशबिधसम्यक्वारित्र । अत्र मम सन्निहितो भव भव सोरठा-नीर सुगन्ध पार, तृषा हरे मल छय करें। ___सम्यकचारित सार, तेरह विध पूर्वा सदा ॥१ ॐ ही त्रयोदश विधसम्यक्चारित्राय जल निर्व।
जल केसर घनसार, ताप हरे शीतल करें।
सम्यक्चारित सार, तेरह विष पूजों सदा १६ *ही भयोदश विधसम्यक्चारित्राय चन्दन निन।
अछत अनुप निहार, दारिद नाशं सुख भरे । सस्यश्चारित सार, तेरह विष पूजो सदा ।।। ही प्रयोदश विधसम्यक्चारित्राय अक्षतान् निन०।। पहूप सुवास उदार, खेद हरे मन शुचि करें। सम्यक्चारित सार, तेरह विध पूजो सदा ।।। ही पोदश विधसम्यक्चारित्राय पुष्पं निन०) नेवज विविध प्रकार, क्षुषा हरै थिरता करें। सम्याचारित सार, तेरह विध पजों सदा॥ ही गयोवषिषसम्यक्वारित्राय नैवेद्य निर्व० ।