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पूरव भोगन प्रीति कराहि, श्रागे फी वांच्छा उरमाहि । प्रतीचार सल्लेखन जोय, दृढता पूर्वक जानो सोय १३ | पद्धरी छन्द ३८उपकार निमित्तसु दान देय, तसु नाम दानसो जान लेय । ३६सरधान भक्ति प्ररु पात्र लेख, ता दान तनो जानी विशेष दोहा - तत्त्वारय यह सूत्र है, मोक्षशास्त्र का मूल ।
श्रध्याय सप्तमो पूर्ण भयो, मिथ्यामति को शून ॥ ४० ॥ ॥ इति सप्तमोध्याय ॥
छन्द विजया तथा सर्वय्या
१ मिथ्यात पंच अरु बारह श्रविरत पद्रह प्रमाद कषाय पचीसा योगके पन्द्रह भेद लखो यह पांच हैं बन्धके भेद मुनीशा ॥ २ सहित कषाय सु जीव गहे क्रमरूपी पुद्गल योग सुरीशा । ताहीको नाम सु बन्ध कहो त्रैलोक्यपती श्रद्भुत जगदीशा । । चौपाई ३ सो बन्धन है चार प्रकार, प्रकृतिबन्ध इस्थिति निरवार । अनुभाग प्ररु तुर्य प्रदेश. या विघ सूत्रमाहि लख वेश । । ४पहिले विधिको है जो भेद, ज्ञानावर्णी पांच विभेद । दर्शन आवरण नव नान, वेदनि दोय प्रकार बखान ।। अट्ठाईस मोहनी वीर, श्रायु चार परकार सु धीर । नाम कर्मके हैं ब्यालीस, गोत्र दोय भाषे जगदीश |४| अन्तराय के पांच निहार । इह विध कर्म प्राठ परकार । दोहा -५ पन नव दो आठबीस चउ, ब्यालिस वो पर पांच । प्राठ भेद के भेद जे, सत्तानव है सांच | m