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३० दिशि प्ररु विदिशि उल्लंघन जान, ऊं चोनोचो क्षेत्रबखान क्षेत्र प्रमाण भूल जाय, मन मानो तसु लेय वढाय । प्रतीचार दिगव्रत के प्राहि, ऐसो कह्यो सूत्र के माहि । ५। ३१ परमित क्षेत्र बाहरी बस्त, लेना देना सब श्रप्रशस्त । तसु वासी सग शब्द करेय, अपनी देहु दिखाई देय । 1 पुद्गल क्षेप सु चेत कराय, प्रतीचार देशव्रत प्राय ।
३२ हास्य करै श्ररु क्रीडा काम, यह बात वहु कहै निकाम ७ मतलब अधिक जु काज कराय, भोग उपभोग लोभ श्रधिकाय प्रतीचार अनरथदंड जान, ऊपर तिनको करो बखान । 1 ३३ योगकुटिल सामायिक माहि, श्रादर उत्सम चितमे नाहि । मूलपाठ कछुकी कछू पढे, खबर नही मन सशय बढे |२६| प्रतीचार सामायिक जान, या विध सूत्र कह्यो व्याख्यान । ३४ निज नैननसो देखे बिना, कोमल वस्तु बुहारिन किना । ३० । कोई वस्तु उठावें नाहि, पूजावस्त्र न आसन घराहि । पोसा भूल बिन उतसाहि, ये प्रोषध श्रतीचार लहाय |३१| ३५ सचितवस्तु श्राहारसु देय, सचित मिलाय जुदा न करेय वस्तु सचित्त मिलो आहार, श्रौर पुष्ट रस जानो सार | ३३ दुखकर पर्च सुभुजे नाहि, भोगुपभोग अतिचार कहाहि । सचितमाहि धारी जो वस्तु, प्रौर सचित ढांकी श्रप्रशस्त । ३३ परहस्ते मुनिभोजन देय, दाता के गुरण मन न धरेय । घरके काममाहिं फँस जाय, मुनिभोजन बेरा बिसराय ॥ ३४ ॥ प्रतिथिविभाग जान प्रतिचार, याही विध लख सूत्र मभार । ३७जीवन मरण सु बांच्छाधार, मित्रानुराग सुपूर्व विचार३६