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चौपई ६ मति श्रुति अवधि मनपर्यय जान,फेवल ज्ञानावणी मान । ७ चक्षु चक्षु अवधि लखि लेउ,केवल दर्शन प्रवरन देउ ।। भेद पाचमो निद्रा जान, निद्रानिद्रा छठो बखान । प्रचलाभेद सातमो धीर, प्रलाप्रचला अष्टम वीर । ७। स्त्यानगृह सो नवमो जान, दर्श अवर्णी भेद बखान । ८ साता और असाता दोय, यही वेदनी भेदसु होय ।। ६ दर्शमोहनी तीन प्रकार, चारित्रमोहनी दो निरधार ।
पद्धरिछन्द अकषायवेदनी नौ प्रकार, अरु सोलह भेद कषाय धार । सम्यकप्रकृती मिथ्यात जान, अरु मिष मिथ्यात कषाय माना रति प्रति हास्य अरु शोक चीन, भय जान जुगुप्ता वेद तीन जा उदय नहिं सम्यक्त होय, चउ अनन्तानुवन्धीव जोय ।१०। जा उदय नहिं व्रत देश धार, सो अप्रत्याल्यानी असार । जाउदयें महाव्रत नाहि होय,लख ताहि प्रत्याख्यानीस जोय११ इह यथास्यात चारित्र भाव, सज्वलन उदयें इनको प्रभाव इक एक भेद सौ चार चार, कुह मान लोभ माया निहार।१२ १० लख आयुकर्म के चार भेद, नारक तिर्यच मनुष्य देव । ११जाउदय भवांतर जीव जाय, सो जानो गतिको भेदभाय१३ जा उदयें इक इन्द्रियादि पांच, सो ग्रहै जीव सो जान सांच लख पांच शरीर प्रौदारकादि,निरमारण रचे जो चक्षु प्रादि१४ बन्धन पुद्गलको मेल जान, संघात सु दृढती संधि मान ।