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( १७६ । व्यन्तर पाठ प्रकार ज्योतिषो पच कहे हैं । द्वादश भेद निहार स्वर्गवासी सु लहे हैं ॥ १ ॥
॥छन्द कुमुमलता ॥ ४ इन्द्र समानिक त्रास्त्रिशत देव पारषद हैं सु सभोके । प्रातमरक्ष लोकपाल पट् सप्त मेद सु जान अनीके ।। परकोनक अभियोग किलिविषक जान त्रदश हैं । यह देवन की जाति देव प्रति मान सु दश हैं ।।२।। व्यन्तर ज्योतिष माहि त्रात्रिशत नहिं देवा । लोकपाल भी नाहिं जान यह निश्च भेवा ॥ वासी भवन सु देव और व्यन्तर के माहीं। दो दो इन्द्र निहार रीति यह सूत्र कहा ही ।। ३ ।। ७ भोग कायकर जान स्वर्ग सौधम ईशाना । ८ स्पर्श रूप शब्द चित्तसो सुरगन थाना ॥ ९. स्वर्ग ऊपरे देव रहित इस्त्री सयोगा । १०. वासी भवन सु देव जान दश भेद मनोगा ॥४॥ दोहा-असुर नाक विद्युत तथा, सुपर्न अग्नि रु वात ।
तनित उदधि अरु द्वीप दिग,दशकुमार विख्यात ॥५॥ ११ व्यन्तर किन्नर किम्पुरुष, महाउरग गन्धर्व ।
यक्ष पौर राक्षस कहे, भूत पिशाच सु पर्व ॥६॥ १२. ज्योतिष सूरज चन्द्रमा, ग्रह नक्षत्र प्रकीर्ण । १३. मेरु प्रदक्षण देत है, मनुज लोक नित कीर्ण ॥७॥ १४. इनहीं ज्योतिष देवकर, होत कालकी ज्ञान । १५. द्वीप पढाई बाहरे, इस्थिर ज्योतिष जान ।।८।।