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|| सर्वया तथा विजया || १६. वासी विमानसु देव कहे अरु १७स्वर्गनसे सुरवासी कहाये स्वर्ग परे प्रहमिंद्र कहे श्ररु १८ ऊपर ऊपर थान लहाये ॥ १६. सौधर्म ईशान सु स्वर्ग कहे अरु सनतकुमार महेद्र सुगाए ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लांतव स्वर्ग कपिष्ट सु शुक्र नवो गिनलाए । ६ । महाशुक्र सतार सु ग्यारम है सहस्रार सु प्रानत जानो । प्रारणत प्रारण अच्युत मान सौधर्मते सोलह स्वर्ग बखानी ॥ तिन ऊपर नव नव ग्रीवक हैं अरु तिनपर नव नव अनुदिशि है तिच ऊपर पंच पचोत्तर हैं तिननाम सुने मन मोदत है ।१० प्रथम विजय वैजयत सु दूजो तीजो जयत सु नाम बतायो । पुनि चौथो अपराजित पचम सर्वारथसिद्ध नाम लहायो ॥ २०. वैभव सुक्ख समाज थिती लेश्या प्ररु तेज विशुद्धपनो है ज्ञान प्रविधि पहिचान विषय इन माहि सु ऊपर अधिक भनो है दोहा - २१. गति शरीर परिग्रह तथा, और जान अभिमान । इनमे हीन निहारिये, ऊपर ऊपर जान ॥ १२ ॥
२२. लेश्या पीत सु जानियो दोय जुगलके माहि ।
तीन जुगलमे पद्म है शेष शुक्ल शक नाहि ||१३||
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२३. नव ग्रीवक पहिले कहे, स्वर्ग समूह सु थान ।
२४. ब्रह्मस्वर्ग लौकात सुर प्राठ प्रकार बखान ॥। १४ । । २५. सारस्वत श्रावित्य हैं, बह्री प्रारुण श्रेष्ठ । गर्दतोय श्ररु तुषित हैं, अव्याबाध अरिष्ट ॥ १५ ॥ सवैया
२६. विजय आदि चारों विमानके दो भवधर के मोक्ष पधारें ।
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