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( १७४ ) तिन ऊपर छह कुण्ड है १४ पद्मद्रह महापद्म । निगच्छ केसरी महापुड, पु डरीक सुख सन ।१२। छह पर्वत के छह दहा, या विध तिनके नाम । अब आगे विस्तार विधि, कहाँ सकल सुखधाम ।१३।
चौपई १५. लबो योजन एक हजार, चौडाई तसु अर्द्ध निहार । १६ दश योजन गहराई जान, पहिले द्रहको जान प्रमान। १४ दोहा-१७. तामधि योजन एकको, राजत कमल सु एक । १८. द्रहते द्रह दूनो लखौ, त्यो ही कमल विशेष ।१५।
छन्द विजया १६. नगासिनी छहो कुलाचल की षट् देवीके नाम सुनो सु सही श्री ही अरु धति कीति कही बुधि देवी लक्ष्मी जान सही।। पल्यकी आयु है सबकी अरु तुल्य समा सुखसाज लही। २०.ग. सिंधु सु रोहित रोहिता हरित नदी हरिकात कही१६ सीता अरु सीतोदा नदी नारी अरु नरकांत सही । सुवरणकला रूपकुला अरु रक्ता रक्तोदा सब ही ॥ नदिय चतुर्दश को परवाह भयो तिन कुण्डनते भुवि मे । २१.वो दो नवि पूरव को गई अरु २२ दो दो शेष अपूरव मे।१७ २३, गग कुटुम्ब सहस्र चतुर्दश सिन्धु चतुर्दशतै दूनो । २४. पच शतक छबीस कला षट् योजन भरतसु क्षेत्र कहानो। इक योजन की उनईस कला तामे छ लेख सु ऊपर है। २२. आगे क्षेत्र सु पर्वतको विस्तार सुदूनो भूपर है ॥१८॥
चौपई
क्षेत्र दुगुन पर्वत को मान, पर्वत दूनो क्षेत्र बखान । यों विधेह पर्यन्त सुहान, २६ उत्तर दक्षिण तुल्य सुजान।१९।