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( १७३ ) सोरठा-३. लेश्या अरु परिणाम, देह वेदना विक्रिया।
महा अशुभ दुखधाम, घर नारको नित क्रिया ॥५॥ ४. देत परस्पर दुक्ख, पावै घोर जु वेदना । ५. प्रसुर कुमारन कृत्य,जानो तीजे नर्फलो ।। ६ ।।
छन्य विजया ६. नारकि मायु प्रमान सनो इक सागर प्रथम दूसरे तीना। तीजे सात समद दश चौथे पांचवें सत्रह सागर दोना ।। बाइम तैतीस सागर जान छटवें अरु सातवे नर्क सुधाना । ७. जम्बू प्रादिक द्वीप गिनो लवनोदधि आदि समुद्र वखाना७ ८. द्वीपते दूने समुद्र कहे पर प्रागेके द्वीप समुद्र ते दूने । याही भांति भिडे हैं परस्पर प्राकृति गोल सु सुन्दर चीने ।। ६. सब तिनके मध्यसु जम्बूद्वीप सुमेरुसु नाभिसु सूत्र बतायो। योजन लाख चौडाई कही या भांति धीगुरुने दरशायो ॥८॥ दोहा-१०. भरत हेमवत हरि तथा, चौथा क्षेत्र विदेह । रम्पक ऐरावत हिरन, सात क्षेत्र लख एह ॥६॥
छन्द विजया ११हिमवन महाहिमवान निषध्या नीलसु रुक्मि शिखिरनी जानो पूरब पच्छिम लम्ने कहे पुनि क्षेत्र विभागको कारण मानो। १२. सुनरन रूपो तायो सुवरन मनो वैडूर्य सु रङ्ग फहो है । रूपो सोनो सु रंग लखो क्रम जान कुसाचल वर्ण लहो है ।१० बोहा-१३. बने किनारे रत्व के, ऊपर नीचे तुल्य ।
छहो कुलाचल जानियो,करियो भाव निशल्य ॥११॥