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निज वृध स्वामोसास प्रगट लोचन टमकारा । तिनकों वेदन नाहि लोकजन मूढ विचारा ॥ सकल ज्ञेय ज्ञायक जु अमरति ज्ञान सुलच्छन । सो किमि जान्यो जाय देव तव रूप विवच्छन ॥२१॥ नाभिराय के पुत्र पिता प्रभु भरत-तन है। कुल-प्रकाशिक नाथ तिहारो स्तवन भने हैं । ते लघु घी असमान गुननको नाहिं भी हैं। सुवरन पायो हापि जानि पाषान तजे हैं ॥२३॥ सुरासुरनको जीति मोहने ढोल बजाया। तीन लोक मे किये सकल वशि यो गरभाया ।। तुम अनन्त बलवन्त नाहि ढिग प्रावन पाया। करि विरोध तुम यकी मूलते नारा कराया ।। २४ ।। एक मुक्तिका मार्ग देव तुमने परकास्या। गहन चतुरगति मार्ग अन्य देवना भास्या ।। 'हम सब देखनहार' इसी विधि भाव सुमिरिके। भुज न विलोको नाथ कदाचित् गर्भ जु परिकै ॥२५॥ केतु विपक्षी प्रर्कतनो फुनि अग्नितनो जल । अम्बुनिधी अरि प्रलय कालको पवन महावल ॥ जगत माहि जे भोग वियोग विपक्षी हैं निति । तेरो उदयो है विपक्षते रहित जगतपति ॥२६॥ जाने बिन हू नवत प्रापको जो फल पावै । नमत अन्यको देव जानि सो हाथ न पाये।