________________
( १४० )
माल भी धनकी हकीकत, है जमाने पर प्रया । क्या भरोमा लक्ष्मी का, पद यहा और कल वहा ॥३॥ बाप मा अरु बहन भाई, बेटा बेटो नार क्या । सब सगे अपनी गरज के, यार क्या परिवार दया। बात मतलब से करे सब, जगत क्या ससार क्या । बिन गरज पूछे न कोई, बात क्या तकरार क्या ।।४ ।। था अकेला हूँ अकेला, पर अकेला ही रहूँ। जो पड़े दुख मै सहे, अरु जो पडे तो मैं हूँ । कौन है अपना सहायक कौन का शरणा गहूँ ।। फिर भला फिसको जगत मे, अपना हमराही कहूं ॥५॥ ज्ञानरूपी जल से अग्नि-क्रोध को शीतल करूं । मान माया लोभ राग रु, द्वेष प्रादिक परिहरू ॥ वश मे विषयो को करू , अरु सब कषायो को हरू । शुद्ध चित प्रानन्द मे में, ध्यान प्रातम का रूं ॥६॥ जगके सब जोवो से अपना, प्रेम हो पर प्यार हो । अरु मेरी इस देह से, सतार का उपकार हो । ज्ञान का प्रचार हो अरु देश का उद्धार हो। प्रेम और पावन्द का व्यवहार घर घर द्वार हो ॥७॥ काल सर पर कालका, खञ्जर लिए तैयार है। कौन बच सकता है इसते, इसका गहरा वार है । हाय जब हर हर कदम पर, इस तरह से हार है। फिर न क्यो वह राह पकडू, सुख का जो भण्डार है ॥