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श्री देव शास्त्र गुरु, विदेह क्षेत्रस्थ श्री विद्यमान बोस तीर्थङ्कर तथा श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठी की
समुच्चय पूजा दोहा-देव शास्त्र गुरु नमन करि, बीस तीर्थकर ध्याय । • सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमू चित्त हुलसाय ।।
ॐ ह्री श्री देवशास्त्र-गुरुसमूह । श्री विद्यमान विंशति-तीर्थङ्करसमूह | श्री अनन्तानन्त । सिद्धपरमेष्ठी समूह | अत्रावतरावतर सवौषट् अाह्वानन । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
अष्टक
( चाल-करले करले तू नित प्राणी, श्रीजिन पूजन करले रे।) अनादिकान से जग मे स्वामिन, जलसे शुचिता को माना । शुद्ध निजातम सम्यक् रत्नत्रय, निधि फो नहि पहिचाना ।। अब निर्मल रत्नत्रय जल ले, देवशास्त्र गुरु को ध्याऊ । विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं ॥
ॐ ह्री श्री देवशास्त्रगुमभ्य श्री विद्यमान विंशति-तीर्थकरेभ्य श्री अनन्तानन्त-सिद्ध-परमेप्ठिम्यो जन्मजरा-मृत्यु-विनाशनाय जल नि०। भव आताप न्टिावन की, निज मे ही क्षमता समता है। अनजाने मे अब तक मैने, पर मे की झूठी ममता है । चन्दन सम शीतलता पाने, श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊ । विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्धप्रभु के गुण गाऊ ॥चन्दनार अक्षय पद के विना फिरा, जग की लख चौरासी योनी मे । प्रष्ट कर्म के नाश करन को, अक्षत तुम ढिग लाया मैं ।।