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[२७ rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. अक्षय निधि निज की पाने अब, देवशास्त्र गुरु को ध्याऊं । विद्यमान श्री बोस तीर्थंकर, सिद्धप्रभु के गुण गाजा अक्षत।३ पुष्प सुगन्धी से प्रातम ने, शील स्वभाव नशाया है। मन्मथ वारणो से बिध करके, चहुं गति दुख उपजाया है । स्थिरता निज मे पाने को श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्धप्रभु के गुण गाऊ ॥पुष्पं। ४ षट रस मिश्रित भोजन से, ये भूख न मेरी शान्त हुई। प्रातम रस अनुपम चखने से, इन्द्रिय मन इच्छा शमन हुई। भूख सर्वथा मेटन को, श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ निवेद्य ५ जड़ दीप विनश्वर को भबातक, समझा था मैने उजियारा। निज गुण दरशायक ज्ञान दीपसे, मिटा मोहका अधियारा । ये दीप समर्पित करके मै, श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊ । विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊ ॥दीपा६ ये धूप अनल मे खेने से, कर्मों को नहीं जलायेगी। निज मे निज की शक्ति ज्वाला, जो राग द्वेष नशायेगी। उस शक्ति दहन प्रकटानेको, श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुरण गाऊं ॥धूपं ७ पिस्ता बदाम श्रीफल लवग, चरणन तुम किंग मै ले आया। आतमरस भीने निजगुरण फल,मम मन अब उनमे ललचाया। अब मोक्ष महाफल पाने को श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊ । विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं ॥फली