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॥अथ जयमाला॥ सोरठा-ज्ञान-सुधाकर चन्द, भविक खेत-हित मेघ हो। भ्रम-तम-भान अमन्द, तीर्थङ्कर बीसो नमो।।
॥चौपाई १६ मात्रा ॥ सोमन्धर सीमन्धर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी।' बाहु बाहु जिन जगजन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे ।। जात सुजात केवल-ज्ञान, स्वयंप्रभू प्रभु स्वय प्रधानं । ऋषभानन ऋषि भानन दोष, अनन्त वीरज वीरज कोषा२। सौरीप्रभ सौरीगुरणमालं, सुगुरण विशाल विशाल दयालं। वज्रधार भव-गिरिवज्जर है, चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ।३। भद्रबाहु भद्रनिके करता, श्रीभुजङ्ग भुजङ्गम हरता। ईश्वर सबके ईश्वर छाजे, नेमिप्रभ जस नेमि विराजे ॥४॥ वीरसेन वीरं जग जाने, महाभद्र महाभद्र बखाने । नमों जसोधर जसघरकारी, नमो अजित-वीरज बलधारी ।। धनुष पाचौं काय विराज, प्रायु कोटिपूरव सब छाजे । समवसरण शोभित जिनराजा, भव-जलतारन-तरनजिहाना। सम्यक् रत्नत्रयनिधिदानी, लोकालोक-प्रकाशक ज्ञानी। शतइन्द्रनिकरि वदित सोहैं, सुरनर पशु सबके मन मोहै ।७। दोहा-तुमको पूजे वन्दना, करे धन्य नर सोय ।
'धानत' श्रद्धा मन धरै, सो भी धर्मी होय ॥ ॐ ह्री विद्यमानविंशतितीर्थरेभ्यो जयमाला पूर्णाय॑म् णिर्व।
॥ इत्याशीर्वादः॥