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( ११६ ) स्वामिन् किसीका न बुरा विचारू,सन्मार्गपै मै चलते न हारू। तत्त्वार्थ श्रद्धान सदैव धारू, दो शक्ति हो उत्तम शील मेरा।। सदा भलाई सबको करूं मै,सामर्थ्य पा जीव दया घरूं मै। ससार के क्लेश सभी हरू मै, हो ज्ञान चारित्र विशुद्ध मेरा॥ स्वामिन् तुम्हारी यह शांत मुद्रा,किसके लगाती हियमे ना क्षुद्रा कहे उसे क्या यह बुद्धि क्षुद्रा,स्वोकारिये नाथ प्रणाम मेरा ।। प्रभो तुम्ही हो निकटोपकारी,प्रभो तुम्ही हो भवदुःखहारी। प्रभो तुम्हींहो शुचिपंथचारी, हो नाथ साष्टांग प्रणाम मेरा ॥ जो भव्य पूजा करते तुम्हारी,होती उन्हीं की गति उच्चधारी। प्रसिद्ध है 'दादुरफूल' वारी, सम्पूर्ण निश्चय नाथ मेरा॥ मेरी प्रभो दशन शुद्धि होवे, सद्भावना पूर्ण समृद्धि होवे । पांचो व्रतो की शुभ सिद्धि होवे,सबुद्धि पै हो अधिकार मेरा। पाया नही गौतम विज्ञ जोलौं,खिरीन वाणी तव दिव्य तौलौं। पीयूष से पात्र भरा सतौलौं, मै पात्र होऊ अभिलाष मेरा। प्रभो तुम्हे ही दिन रात ध्याऊ, सदा तुम्हारे गुरणगान गाऊ। प्रभावना खूब करू कराऊ, कल्याण होवे सब भाँति मेरा । श्री वीर के मारग पे चले जो,धी वीर पूजा मन से करे जो। सद्भव्य वीर स्तव को पढे जो, वे लब्धियाँ पा सुख पूर्ण होते।
ऋषि-मण्डल-स्तोत्र प्राद्यन्ताक्षरसलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यस्थितम् । अग्निज्वालासमं नाद विन्दुरेखासमन्वितम् ॥१॥