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( ११५ ) घरो रायने सेठको शूलिकाप, जपी आपके नामको सार जायें । भये थे सहाई तबै देव आये, करी फूल वर्षासु विष्टर बिठाये ।। जब लाखके धाम सब ही प्रजारो, भयो पांडवों पै महाकष्ट भारी। तब नाम तेरे तनी टेर कीनी, करी थी विदुर ने वही राह दीनी।। हरी द्रौपदी धातुकोखंड मांही, तुम्ही हो सहाई भला और नाहि॥ लियो नामतेरो भलो शील पालो, बचाई तहाँत सबै दुःख टालो।। जबै जानकी रामने जो निकारी, धरे गर्भको भार उद्यान डारी। रटो नाम तेरो सबै सौख्यदाई, करी दूर पोडासु छिन ना लगाई। विसन सात सेव कर तस्कराई, सुअंजनको तारयो घडी ना लगाई सहे अजना चन्दना दुःख जेते, गये भाग सारे जरा नाम लेते। घडे बीचमे सासने नाग डारो, भलो नाम तेरोजु सोमा संभारो। गई काढने को भई फूलमाला, भई है विख्यातं सबै दुःख टाला।। इन्हे मादि देके कहालौ बखानो,सुनो विरदभारी ति:लोक जानी अजी नाथ मेरी जरा ओर हेरो, बड़ीनाव तेरी रती बोझ मेरो॥ गहो हाथ स्वामी करो वेग पारा,कहूँ क्या अब प्रापनी मै पुकारा सबै ज्ञानके बीच भासी तुम्हारे, करो देर नाही अहो शातिप्यारे।।
पत्ता श्रीशांति तुम्हारी, कीरति भारी, सुन नर नारी गुणमाला । 'बख्तावर' ध्यावे, 'रतन सुगावे, मम दुख दारिद सब टाला'।।
श्री वीर स्तवन श्रीमत् महावीर विभो मुनीन्यो, देवाधिदेवेश्वर शानसिन्धो । स्वामिन तुम्हारे पदपद्म का हो, प्रेमी सदाही यह चित्त मेरा।