SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०८ ) तब क्या तुम्हे चढाऊँ वे ही, करूं प्रार्थना ग्रहण करो । होगी यह तो प्रकट पज्ञता, तव स्वरूप को सोच करो || मुझे धृष्टता दीखे अपनी और श्रश्रद्धा बहुत बडी । हेय तथा सत्यक्त वस्तु यदि, तुम्हे चढाऊँ घडी घडी || ६ || इससे युगल हस्त मस्तक पर रखकर नस्त्रीभूत हुआ । भक्ति सहित मै प्ररणम् तुमको बार-बार गुणलीन हुश्रा || सस्तुति शक्ति समान करू श्री सावधान हो नित तेरी । काय वचन की यह परिणित ही, अहो द्रव्य पूजा मेरी ॥७॥ भाव भरी इस पूजा से ही, होगा श्राराधन तेरा । होगा तब सामीप्य प्राप्य श्रौ, तभी मिटेगा जग फेरा ॥ तुझमे मुझमे भेद रहेगा, नही स्वरूप से तब कोई । ज्ञानानन्द कला प्रकटेगी, थी श्रनादि से जो खोई ||६|| वैराग्य भावना दोहा - बीज राख फल भोगले, ज्यो किसान जग माहि । त्यो ची सुख मे मगन, धर्म विमारे नाहि ॥ योगीरासा वा नरेन्द्र छन्द इस विधि राज्य करे नर नायक भोगे पुण्य विशाला । सुख सागर मे मग्न निरन्तर जात न जानो काला ॥ एक दिवस शुभकर्म योग से क्षेमङ्कर मुनि वन्दे । देखे श्रीगुरु के पद पङ्कज लोचन श्रलि श्रामन्दे ॥ १॥ तीन प्रदक्षिणा दे शिरतायो कर पूजा स्तुति कीनी ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy