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(१०) जो पूर्ण ज्ञान स्वरूप जल से, न्हवन भपिजन को करें । तामं जो लगि धने पंडित, हस हो तोहत मनो। ते पोर स्वामीजी हमारे नयन-पयगामो बनो ।।६।। जाने जगत पी जन्तु जनता, पारी स्वयश तमाम है। है येग जापो प्रमिट ऐसो, विकाट प्रतिभट फाम है। ताको स्वदल से प्रौढयय में शान्ति शासन हित हनो। ते घोर स्वामीजी हमारे नयन-पथगामी चनो ॥७॥ नयमोप्त भव में साधुनन को मरण उत्तम गुण भरे। निःस्वार्थ के ही जगत बांधव, विदित या मगल करें ।। मोह स्पो रोग हनिषे, बंधवर अद्भ.त मनो। ते वीर स्वामीजी हमारे नयन-पथगामी बनो । मोहा-महावीर प्राटक रच्यो, 'भागवन्द' रचि गान ।
पढ़े सुन जो भाव नों, ते पा निरयान ।।
वारह भावना ( मंगतराय हत) दोहा-बन्दू श्री प्ररहन्त पद, धोतराग विज्ञान । __ वर बारह भावना, जगजीयन हित जान ।।
(यिनपद छन्द) कहा गये चक्री जिन जीता, भरतखण्ड सारा । फहां गये वह रामर लछमन जिन रावन मारा ।। कहां कृष्ण रुक्मिणि सतभामा, अरु संपत्ति सगरी। कहां गये वह रङ्गमहल पर, सुवरन की नगरी ॥२॥