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________________ (१००) ' महावीराप्टक स्तोत्र (भाषा) चेतन अचेतन तत्त्व जेते. हे प्रनन्त जहान मे । उत्पाद व्यय ध्रुवमय मुकुरवत, लसत जाके जान मे । लो जगतदरणी जगत मे सन्मार्ग-दर्शक रवि मनो। ते वीर स्वामीजी हमारे, नयन-पथगामी वनो ॥१॥ टिमिकार विन युग कमल लोचन, लालिमा ते रहित हैं। बाए पन्तर की क्षमानो, भविजनों से कहत हैं। प्रति परम पावन शान्तिमुद्रा, जासु तन उज्ज्वल घनो। ते वीर स्वामोजी हनारे नयन-पथगामी बनो ॥२॥ निहिं स्वर्गवाती विपुल तुरपति नन्न तन वह नमत हैं । तिन मुकुटमणि के प्रभामडल पद्य-पद मे ललत हैं। जिन मात्र सुमरन रूप जलते, हने भव प्रातप घनो। ते वीर स्वामीजी हमारे नयन-पपगामी बनो ॥३॥ मन मुदित मंडूक ने प्रभु पूनवे मनसा करी। तत्छन लही तुर सम्पदा, बहुऋद्धि गुणनिघि सो भरी ॥ जिहिं भक्ति तो सद्भक्तजन लहँ, मुक्तिपुर को सुख घनो। ते वीर स्वामीजी हमारे, नयन-पथगामी बनो ।।४।। कंचन तपतक्त ज्ञाननिधि हैं, तदपि ज्ञान वजित रहे । जो हैं अनेक तथापि इक, सिद्धार्थ सुत भव रहित है। जो वीतरागी गति रहित हैं तदपि अद्भत गतिपदो। ते वीर स्वामीजी हमारे, नयन-पथगामी बनो ॥५॥ जिनकी वचनमय अमल सुरसरि, विविध नय लहरै घरै।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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