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(८७) कहलाने को तो शशिधर हो,तेज पुंज रवि से बढकर हो । • नाम तुम्हारा जग में सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा । राक्षस भूत प्रेत सब भागें,तुम सुमरत भय कोई ना लागे। कोति तुम्हारी है प्रति भारी,गुण गाते नित नर और नारी। जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी ।। जो भी जैसी प्राश लगाता. पूरी उसे तुरत कर पाता। दुखिया पर पर जो पाते हैं. सकट सब खो कर जाते हैं । खुला सभी को प्रभू द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है। अन्धा भी यदि ध्यान लगाते, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावे ।। पहरे भी सुनने लग जावे, गहले का पागलपन जावे । प्रक्षण ज्योति का घृत जो लगावे,संकट उसका सब कट जावे परणों की रज प्रति सुखकारी,दुख दरिन सब नासन हारी। चालीसा मो मन से ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पत्ति पावे ।। पार करो दुखियों की नैया, स्यामी तुम बिन नहीं खिषया । प्रभु में तुमसे कछु नहीं चाहूं, दर्श तिहारा निशदिन पाऊँ । दोहा-कर्स वन्दना आपको, श्रीचन्द्रप्रभ जिनराज ।
अगल मे मंगल कियो,रखो 'सुरेश' की लाज ।।इति।।
पहिच्छत्र पार्श्वनाथ चालीसा शीश नवा प्ररिहन्त को, सिद्धन करूं प्रणाम । उपाध्याय प्राचार्य का, ले सुखकारी नाम ।। सर्वसाधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार ।