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जिम धर्म से डिगने का कहीं मा पडे कारन । तो लीजिये उबार मुझे भक्त उपारन ॥ निजकर्म के संजोग से जिस जोन में जावो । तहा रोजिए सम्यक्त्व जो शिवधाम को पायो ॥ जिन शासनी हंसासनी पद्मावती माता । भुज चारतें फल चारु दे पद्मावती माता ॥२३॥
श्री महावीर चालीसा
( शमशाबाद निवासी स्व० पूरनमल कृत )
बोहा- सिद्ध समूह, नमों सदा, घर सुमरु परिहन्त निर माकुल, निर्वाच्छ हो, भए लोक से प्रन्त ॥ विघ्न हरण मंगल करन, वर्धमान महावीर | तुम चितत गिता मिट, हो प्रभु चर्म शरीर ॥ चौपाई
जय महावीर दया के सागर, जय श्रीसम्मति ज्ञान उजागर । शांत छबि पूरत प्रति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी ॥ कोटि भानु से प्रति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे। महाबली परि कर्म बिवारे, नोषा मोह सुभट से मारे ।। काम क्रोध तजि छोडो माया, क्षरप मे मान कषाय भगाया । रामो नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी ।। प्रभु तुम नाम जगत मे सांचा, सुमिरत भागत भूत पिशाचा । राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चितत भय कोई न लागे !