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( ७८ ) नब पापने उम गत को बनाय दिया है। जिनधम २. निगान को फहराय दिया है । जिन० ॥६॥ या बौद ने नाग का किया कुम्भ मे यापन । अकलद्धजी से करते है बाद बेष्ठापन ।। तव प्रापने महाय रिया घाय मान घन । नाग का हग पान हुमा बोध उत्यापन ।। जिन० ॥७॥ इत्यादि जहा धर्म का विवाद पड़ा है। तहा मापने परवादियो का मान हाग है ।। तुममे यह स्याद्वाद का निशान सरा है। म वाम्त हम पापमे अनुगग घरा है । जिन० 111 तुम मन्द ब्रह्मरप मन्त्र मूति घरया । चिन्तामणी समान कामना की भरैया ।। जप जाप जोग जैन की मब मिद्धि करया । परबाद के पुग्योग की तत्काल हरया ।। जिन० ॥६॥ लग्वि पावं तेरे पास गत्रु बाम ते भाज । अकुश निहार टुष्ट जुष्ट दपं को त्याजे ।। दुख म्प खर्च गर्व को वह वत्र हरे है। फर फज मे इफ कजसो सुरव पुञ्ज भरे है ।जिन०।१०। चरणारविन्द मे है नूपुरादि प्राभग्न । फटि मे है सार मेसला प्रमोद को करन । उर मे है सुमन माल, सुमन भान की माला । पट रङ्ग अग मग सो सोहे विशाला ।। जिन० ॥११॥