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: जब पार्श्वनाथजी ने शुक्ल ध्यान प्ररम्भा ।
कमठेश ने उपसर्ग तब किया था अचम्भा ।। निननाय सहित प्राय के सहाय किया है । निननाथ को निज माय पंचढाय लिया है जिन०११॥ फल बोन सुमन लीन तेरे शीश विराज । जिनराज तहा ध्यान धरें प्राप विराजे ।। फानन्द ने फनी की करी जिनन्द पे छाया। उपसर्ग वर्ग मेट के प्रानन्द वढाया जिन.।१ जिनपावं को हुआ तभी केवल सुज्ञान है । समवादिसरन की वनो रचना महान है ॥ प्रभू ने दिया धर्मार्थ फाम मोक्ष दान है। तब इन्द्र प्रादि ने किया पूजा विधान है । जिन० ॥३॥ जबसे किया तुम पार्श्व के उपसर्ग का विनाश । तबसे हुआ यश श्रापका लोक में प्रकाश ।। इन्द्रादि ने भी आपके गुरण मे किया हुलास । किस वास्ते कि इन्द्र खास पार्श्व का है दास ।। जिन.।४।। धर्मानुराग रङ्ग से उमङ्ग भरी हो। सध्या समान लाल रङ्ग प्रग घरी हो ॥ जिन सन्त शीलवन्त पं तुरन्त खड़ी हो। मनभावनी दरसावनी प्रानन्द बडी हो । जिन. ॥५॥ जिन धर्म की प्रभावना का भाष किया है। तिन साधने भी आपकी सहाय लिया है ।।