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( १५ ) चरम तीथंडर चरम शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर ।। शिखरसमेद जिनेसुर बीस, भावसहित बन्दों निगदीस ।३ परवतराय रु इन्द्र मुनिद, सायरदत्त आदि गुणवृन्द ।। नगरतारवर मुनि अठकोडि, वदी भावसहित फरजोडि ।।४।। श्री गिरनार शिखर विरयात, कोडि बहत्तर पर सौ सात । शबुप्रय म्नकुमर भाय, अनिरुद्ध आदि नमतसु पाय ।। रामचंद्र के सुत हूँ वीर, लाडनरिन्द प्रादि गुणधीर । पाच कोडि मुनि मुक्ति-मभार, पावागिरि वन्दो निरधार ॥६॥ पांडव तीन द्रावडराजान, पाठकोडि मुनि मुकति पयान । श्रीशत्रुजय गिरि के शोष, भावसहित वर्वी निशदीश ॥७॥ जे वलभद्र मुकति मे गये, पाठकोडि मुनि औरह भये । श्री गजपंथशिखर सुविशाल, तिनके चरण नमतिहुकाल ॥८॥ रामहणुमुग्रीव सुडोल, गवयगवाल्य नील महानील । फोडि निन्यारणवे मुक्ति पयान, तुङ्गीगिरि वदों धरि ध्यान ।।६॥ नङ्ग अनङ्ग कुमार सुजान, पाचकोडि अरु अर्घ प्रमान । मुक्ति गये सोनागिर शीष, ते वदी त्रिभुवनपति ईश ॥१०॥ रावरण के सुत मादिकुमार, मुक्ति गये रेवातट सार । कोटि पञ्च अरु लाख पचास, ते बी घरि परम हुलास ॥११॥ रेवा नदी सिद्धवर फूट, पश्चिम दिशा देह जह छूट । हूँ चक्री दश कामकुमार, पाठकोडि वाँ भव पार ॥१२॥ बडवानी बडनगर सुचङ्ग, दक्षिण दिशि गिरिचूल उतङ्ग। इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण, ते बों भवसागर तणं ।।१३।।