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( १४ । मै। २६ । शिरोनती मै करू नम मस्तक करि धरिक ।
आवर्तादिक क्रिया करूं मनवचमदहरिके ।। तीन लोक जिनभवनमाहि जिन हैं जु प्रकृत्रिम । कृत्रिम है द्वय अर्द्धद्वीपमाही बन्दों जिन । २७ । पाठ कोडि पर छप्पन लाख जु सहस सत्याणू । चारि शतक परि असी एक जिनमन्दिर जाणू ।। व्यतर ज्योतिषमांहि सख्य रहिते जिनमन्दिर । जिनगृह बन्दन करू हरहु मम पाप सङ्घकर । २८ । सामायिक सम नाहि और कोट वर मिटायक । सामायिक सम नाहि और कोउ मैत्रीदायक । श्रावक अणुव्रत आदि अन्त सप्तम गुणथानक । यह आवश्यक किये होय निश्चय दुखहानक । २६ । जे भवि प्रातम काज करण उद्यम के धारी। ते सब काज विहाय करो सामायिक सारी ॥ राग दोष मद मोह क्रोध लोभादिक जे सब । बुध 'महाचन्द्र' विलाय जाय तातै कोज्यो अब । ३०।।
इति सामायिक भाषा पाठ समाप्त
निर्वाण काण्ड (भाषा) दोहा-वीतराग बदौं सदा, भाव सहित सिर नाय । कहूँ काड निर्वारण की, भाषा सुगम बनाय । १ ।
चौपई ५ मात्रा अष्टापद प्रादीसुरस्वामि, वासुपूज्य चपापुरि नामि । नेमिनाथस्वामी गिरनार । बदौं भावभगति उरधार । २ ।