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अक्षत शुभचन्द्रके करसे, भरो करणथालमे सरसे । प्रक्षपद प्राप्तिके करान, यजो मुनिराज के चररणन | ३ | अक्षत पहुप त्यो धारणके रंजन, उड़त तामाहि मकरदन । मनोभव वारके हरनन, यजो मुनिराजके चरणन ||४||पुष्पं ले पक्वान्न बहुविधिके, भरो शुभयाल सुवरण । असातावेदनी क्षुररान, यजो मुनिराजके चरणन || १ | नैवेद्यं ॥ बगमगे दीप लेकरिके, रकाबी स्वरांमे घरिके । मोहविध्वंसके फरगन, यज्ञों मुनिराज के चरणन ||६| दीपं ॥ अगर मलयागिरी चदन, खेयकरि धूपके गंवन । होय कर्माष्टको जरमन, यजो मुनिराजके चरणन ||७|धूपं ॥ सिफल श्रादि फल ल्यायो, स्वर्ण को थाल भरवायो । होय शुभमुक्तिको मिलनन, यजो मुनिराजके चरणन || ८ | फलं जलादिक द्रव्य मिलवाये, विविध वादित्र बजवाये । अधिक उत्साहकरि तनमे, चढावो प्रधं चरणनमे || ६ | श्रध्ये || सोरठा-तारण तरण जिहाज, भवसमुद्र के माहिं जो । ऐसे श्रीऋषिराज, सुमरि सुमरि विनती करो ॥१॥ छन्द पद्धरि ।
जय जय जय श्रीमुनियुगल पाय, मैं प्ररणमो मन वच शोशनाय । ये सब असार संसार जानि, सव त्याग कियो श्रातमकल्याण || क्षेत्र वास्तु पर रत्न स्वर्ण, धन धान्य द्विपद श्ररु चतुकच । श्ररु कौप्य भांड दश वाह्य भेद, परिग्रह त्यागे नहीं रंच खेद | ३| मिथ्यात्व तज्या संसार मूल, मुनि हास्य अरति रति शोफशूल ।