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गजपुर पधारे महा सुक्खकारी ।
घरो रूप वामनसु मनमे विचारी ॥२॥ गये पास वलिके हुआ वो प्रसन्ना ।
जो माहो सो पावो दिया ये वचन्ना ।। मुनि तीन डग धरती सु तापै ।
दई ताने ततक्षिन सु नहिं ढील थाप ॥३॥ कर विक्रिया सु मुनि काया बढाई ।
___ जगह सारी लेली सु डग दो के माहीं।। धरी तीसरी डग बली पीठ माहीं।।
सुमागी क्षमा तव बली ने बनाई ।।४।। जल की सुवृष्टि करी सुक्खकारी ।
सरव अग्नि क्षरण मे भई भस्म सारी। टरे सर्व उपसर्ग श्री विष्णुजी से ।
भई जे जैकार सरव नन हो से ।।५।।
चौपई फिर राजा के हुक्म प्रमान, रक्षा बन्धन वधी सुजान । मुनिवर घर घर कियो विहार, श्रावफजन तिन दियो प्रहार जाघर मुनि नहिं पाये कोय, निज दरवाजे चित्र सुलोय । स्थापन कर तिन दियो अहार, फिर सब भोजन फियो सम्हार तबसे नाम सलूना, जैन धर्म फा है त्यौहार । शुद्ध क्रिया कर मानो जीव, जासो धर्म बढे सु प्रतीय ।। धर्म पदारथ जगमे सार, घर्म विना झूठो ससार । सावन सुदी पूनम जव होय, यह दो पूजन कीजै लोय ।।