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[ १८७ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि० । लाडू फेनी घेवर लाय. सब मोदक मुनि चरण चढ़ाय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय || सप्त ।। दया. || ॐ ह्री श्राविष्णुकुमारमुनिभ्य नम क्षुधा रोगविनाशनाय नैवेद्य नि० । घृत कपूर का दीपक जोय, महातिलाई सब जावं खोय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥ सप्त. ॥ दया. ॥ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम मोहान्धकारविनाशनाय दीपं । अगर कपूर सुधूप बनाय, जारे भ्रष्ट कर्म दुखदाय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥ सप्त । दया. ॥ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम प्रष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि० । लौंग लायची श्रीफल सार, पूजों श्रीमुनि सुख दातार । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय || सप्त. ॥ दया. ॥ ॐ ह्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम मोक्षफलप्राप्तये फल नि० ।
जल फल श्राठों द्रव्य संजोय, श्रीमुनिवर पद पूजो दोय । दयानिधि होय, जय जगबन्धु दयानिधि होय ॥ सप्त । । दया. ॥ ॐ ह्री श्री विष्णुकुमारमुनिभ्य नम अनर्घ्यपदप्राप्तये श्रध्यं नि० ।
अथ जयमाला ।
दोहा - श्रावरण सुदी सुपूर्णिमा, सुनि रक्षा दिन जान । रक्षक विष्णुकुमार मुनि, तिन जयमाल बखान ॥
चाल - छन्द भुजङ्गप्रयात ।
श्री विष्णुदेवा करूँ चर्ण सेवा |
हरो जनकी बाधा सुनो टेर देवा ॥