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सब भाइनको दो समझाय, रक्षाबन्धन कथा सुनाय । मुनिका नित घर करौ प्रकार, मुनि समान तिन देउ प्रहार सबके रक्षा बन्धन बांध, जैन मुनिन की रक्षा जान । इस विधि से मानो त्यौहार, नाम सलूना है ससार ॥ ( घत्ता ) - सुनि दीनदयाला, सब दुख टाला, श्रानन्द माला सुखकारी 'रघुसुत' नित वदे, प्रानन्द कंद, सुक्ख करन्दे हितकारी ॥ ॐ ह्री श्रीविष्णुकुमारमुनिभ्य नम महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । दोहा - विष्णुकुमार सुनिके चररण, जो पूजे धर प्रीत । 'रघु-सुत' पावै स्वर्गपद, लहैं पुण्य नवनीत || इत्याशीर्वादा
सलूना पर्व पूजा |
| श्री कम्पनाचार्यादि सप्तशत मुनि पूजा । ] ( चाल जोगीरासा )
पूज्य श्रकम्पन साधु शिरोमणि सात शतक मुनि ज्ञानी । श्री हस्तिनापुर कानन मे हुए अचल हढ़ ध्यानी । दुखद सहा उपसर्ग भयानक सुन मानव घबराये ।
श्रात्म-साधना के साधक वे, तनिक नहीं अकुलाये । योगिराज श्री विष्णु त्याग तप, वत्सलता वश प्राये । किया दूर उपसर्ग, जगत-जन मुग्ध हुए हर्षाये ||
सावन शुक्ला पन्द्रस पावन, शुभ
दिन था सुखदाता । पर्व सलूना हुआ पुण्य-प्रद यह गौरवमय गाथा || शान्ति दया समता का जिनसे नव आदर्श मिला है ।