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दुष्ट कृत उपसर्ग नाशक एक ही जिन नाथ को। मैं पूजता हूँ भाव से कलिकुण्ड पारस नाथ को । ___ॐ ह्री श्री क्ली ऐ अर्ह कलिकुण्डदण्ड-श्रीपार्श्वनाथाय घरणेन्द्रपद्मावती-लेविताय अतुल-वलवोर्य-पराक्रमाय सर्वविघ्नविनागनाय हम्ल्य. म्म्ल्य- म्म्ल्व्य व्यहँ मल्व्य मल्ल्यसम्ल्यह स्म्ल्य्य जन्म जरा मृत्यु विनामनाय जल निर्वपामीति स्वाहा । प्रतिगन्ध से जिस पै लुभाते भ्रमर नित्य अनेक हैं। वह मलयगिरि का वाहनाशक शुद्ध चन्दन एक है।दुष्टाचदन चन्द्र के सम शुक्ल स्वच्छ प्रखण्ड शालि बनाय कै । अविनाशि परकी प्राप्तिहेतु अनिध तदुल लायक ।दुष्टानक्षतं मंदार अरु रकुलादि के रमणीक पुष्प मंगायक। सर मे प्रफुल्लित कमल कुसम सुगंधसो महकायक दुष्ट.पुष्पं ताजे बनाये विविध घृत रसपूर्ण व्यञ्जन लायक । अति स्वच्छ सुन्दर कनक भाजनमे उन्हे रखवायकै नैवेद्य जग का प्रकाशक तम विनाशक कनकमय दीपक धीं। बहु जगमगाते ज्योतिमय प्रति ज्वलित से पूजा करू दुदीप कपूरचन्दन अगुरु काष्ठादिक अनेक मगायक । प्रति गंध युक्त अनूप धूप दशांगको बनवायकै ॥दु । धूपं। गोला छुहारे दाख पिस्तादिक अनेक सुलायक। मोक्ष का अभिलाष कर रमणीक फल मंगवायक फलं। जल गंध प्रक्षत पुष्प चरु फन दीप धूप मिलायक । वसु अर्घ से कलिकुण्ड पूजू, हर्ष भाव बढायफै ।।दुप्रिय।