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श्रीवासुपूज्य जिनराय, निर्वृति थान प्रिया । चम्पापुर थल सुखदाय, पूजो हर्ष हिया ॥
ॐ ह्री श्रोचम्पापुरसिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं । कश्मीरी केशर सार, अति हि पवित्र खरी । शीतल चंदन सग सार, लै भवताप हरी ॥श्रीवासु.।सुगंध।। मरिणद्युति सम खंड-विहीन, तन्दुल लै नीके । सौरभयुत नव वर बीन, शालि महानीके ॥श्रीवासुनिक्षत। अलि लुभन सुमन हग घ्राण, सुमन जु सुर द्रमके । ले वाहिम अर्जुनवान, सुमन दमन झुमके ॥श्रीवासु.।पुष्प।। रस पुरित तुरित पकवान, पक्क यथोक्त घृती। क्षुध गदमद प्रदमन जान, लैविध युक्तकृती ॥श्रीवासु.नैवेद्य।। तम-अज्ञ-प्रनाशक सूर, शिवमग परकाशी । लै रत्नदीप द्युतिपूर, अनुपम सुखराशी ॥ श्रीवासुदीपं। वर परिमल द्रव्य अनूप, शोध पवित्र करी। तसु चरण कर कर धूप, लै वसु कर्म हरी ॥श्रीवासु.।धूपं ।। फल पक्क मधुर रसवान, प्रासुक बहुविधके । लखि सुखद रसन हग घ्रान, लै प्रद पद-सिधके ॥श्रीवासु फलं। जल फल वसु द्रव्य मिलाय, लै भर हिमथारी । वसु अग घरापर ल्याय, प्रमुदित चितधारी ॥श्रीवासु.प्रयं
अथ जयमाला। दोहा-भये द्वादशम तीर्थपति, चम्पापुर शुभथान ।
तिन गुरणकी जयमाल कछु, कहाँ श्रवरण सुखदान ।।